उजाले की चाह
उजाले की चाह
पोस्ट संख्या -67
उजाले की चाह मेंजिंदगी न गुज़र जाये कहीं ,
सीख लेना हुनर
उजाले बाँटने का!!
ग़म के अंधेरे
न छोड़ेंगे पीछा कभी,
सीख लेना दिल लगाना
गम की परछाइयों से!!
मेरी किस्मत में जो लिखा
मिलेगा मुझे इसी जन्म में,
सीख लेना शामिल होना
ग़ैरों के दु:ख-दर्द में !!
जी रहें हैं हम वर्तमान में
मगर डूबे हैं
बीते वक्त की सोच में ,
सीख लेना बाहर निकलना
गफलत की नींदर से !!
जामा पहना है मानव का
क्षणभंगुर होगी
देह भी एक दिन,
सीख जाना "पूर्णिमा "
रूह से मुस्कुराना!!
डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब
13/8/25
भावपूर्ण कविता.
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