पोस्ट संख्या- 1 देश हित में सिर उठाना आ गया
गज़ल-1 पोस्ट संख्या- 1
देश हित में सिर उठाना आ गया।
दुश्मनों को भी झुकाना आ गया।।
आँधियों की चीरते जो बन हवा,
पाँव उनके सँग मिलाना आ गया।।
प्रेम का दरिया जो करते पार हैं,
बात उनकी अब सुनाना आ गया।।
आग नफरत की बुझाते लोग जो,
वक्त उनके सँग बिताना आ गया।।
भूख से जो थे बिलखते रोज ही ,
अन्न निर्धन को खिलाना आ गया।।
जोश में जो होश अपना खो रहे,
पाठ धीरज का पढ़ाना आ गया।।
दूर तक फैली हुई है "पूर्णिमा"
आपसी तम को हराना आ गया।।
डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब
सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय सर आपका, आपकी छत्रछाया मिली, लेखन सफल हुआ
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