पोस्ट संख्या- 11 हमें घर को सजाना आ गया है
गज़ल-11पोस्ट संख्या- 11
हमें घर को सजाना आ गया है
गिले-शिकवे मिटाना आ गया है(1)
जवानी चार दिन की ही रहे,
बुढ़ापे को हँसाना आ गया है।।(2)
अदायें हुस्न पर यूँ इश्क मरता
जवानों को लुभाना आ गया है।।(3)
नजर झुक कर कहेगी आज उनसे
सनम तुमको मनाना आ गया है।।(4)
दरोदीवार में थे छेद गहरे,
दरारें और गहरी हो न जायें
गहन धब्बे छिपाना आ गया है।।(5)
रवानी देह में आये तुम्हीं से
हमें छिपना छिपाना आ गया है।।(6)
बड़ी चंचल है माया "पूर्णिमा" सुन
उजाड़े घर ,बनाना आ गया है।।(7)
डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।
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