पोस्ट संख्या- 17 मेरे लफ़्ज़ों में कोई हिसाब नहीं।
गज़ल- 17 पोस्ट संख्या- 17
मेरे लफ़्ज़ों में कोई हिसाब नहीं।
दिल में अब बचा अजाब नहीं।।
नशा होता है बस पीने से ही,
अब पाक हुस्न ओ-शबाब नहीं।।
भोलेपन पर जो मर मिटे,
ऐसा जहान में आफताब नहीं।।
सब अधूरें हैं चाहतें अधूरी,
पूरे किस्से वाली किताब नहीं।।
हाल-ए-दिल सुनाऊँ किसको,
"पूर्णिमा"जग में कोई महताब नहीं।।
डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब
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