पोस्ट संख्या- 18 बड़े चालाक जग के लोग शीघ्र ही समझ जाऊँगी

 गज़ल-18 पोस्ट संख्या- 18




बड़े चालाक जग के लोग शीघ्र ही समझ जाऊँगी,
कभी ना ठोकरे अब दर-ब-दर की मैं खाऊँगी।
मनुज सहमा हुआ है शिकन चेहरे पे दिखती,
चिराग-ए रोशनी करके अंधेरों को हराऊँगी।
अकेले चल मुसाफिर सोच न कि तू अकेला है,
न होगा साथ गर कोई तो भी मैं मुस्कुराऊँगी।
हमेशा एक सा न वक्त रहता दोस्तो जग में,
वक्त के संग चलकर ही फर्ज अपना निभाऊँगी।
भटक कर रास्ता अपना जो बुद्धि हीन हो जाते,
जलाकर ज्ञान का दीपक दिशा उनको दिखाऊँगी।
बिताना जिंदगी हर पल "पूर्णिमा "कर्मनिष्ठा से,
जमीं पर रोशनी बिखरा गगन को फिर सजाऊँगी।
डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब

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