पोस्ट संख्या- 20 हुई दस्तक बहारों की निखरना आ गया हमको।
गज़ल- 20 पोस्ट संख्या- 20
हुई दस्तक बहारों की निखरना आ गया हमको।
चली पतझड़ हवायें जब सिमटना आ गया हमको।।
तुम्हारी बेरुखी को ही कभी हम जीत ना पाये,
जगत के घात-प्रतिघातों से लड़ना आ गया हमको।।
हवायें चल पड़ें विपरीत फिर भी हम न घबराते ,
खिलाफत करने वालों को कुचलना आ गया हमको।।
हमेशा बात को अपनी घुमाते लोग क्यों जग में,
हुये चर्चे फिजाओं में समझना आ गया हमको।।
बहुत ही लड़खड़ाते पाँव जब विपदा घनी आये,
अपाहिज पर पड़ी नजरें सँभलना आ गया हमको।।
कमी औरों की ही देखी न देखी खूबियाँ हमने,
किसी का आसरा बनके सुधरना आ गया हमको।।
चमन की लूटकर खुशियाँ कभी आँगन नहीं फलते,
दिखाकर "पूर्णिमा" नभ में चमकना आ गया हमको।।
डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।,
(8/7/17 को लिखी)
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