पोस्ट संख्या- 21 जिन्दगी बेवजह मुस्कुराती नहीं।
गज़ल- 21 पोस्ट संख्या- 21
जिन्दगी बेवजह मुस्कुराती नहीं।
ये वफा अब हमें रास आती नहीं।।
बिन तुम्हारे अधूरे सभी ख्वाब हैं।
रात में चाँदनी भी लुभाती नहीं।।
छोड़ कर जो गये लौट कर आयेंगे।
चैन की नींद फिर भी क्यों' भाती नहीं।।
बोल कड़वे लगे दिल बहुत साफ था,
राज दिल का कभी भी बताती नहीं।।
कुछ निशां " पूर्णिमा " इतने गहरे हुये,
याद दिल से तुम्हारी क्यों जाती नहीं।।
डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।(2/4/17)
Comments
Post a Comment