पोस्ट संख्या- 26 मुहब्बत के चिरागों को अँधेरा चीरते देखा।

 गज़ल- 26 पोस्ट संख्या- 26



मुहब्बत के चिरागों को अँधेरा चीरते देखा।

जवानों को हवा का रुख हमेशा मोड़ते देखा।।

नहीं अभिशाप निर्धनता समझ जिनको ये' आ जाये,

उन्हीं की मेघ गर्जन को गगन में गूँजते देखा।।

बिना माँझी के' भवसागर न नैया पार अब होगी ,

भँवर में डूबते जन को सहारा ढूँढते देखा।

असर कुछ इस तरह छाया युवाओं पर नशे का अब ,

बिना श्रम के ही' सपनों को नयन में पालते देखा।

सफाई का चला अभियान घर तो चमचमाते थे,

गली कीचड़ सनी बेहद मनुज को हाँफते देखा। 

जिसे गोदी खिलाया था वही हथियार से खेले,

कलेजे के हुये टुकड़े पिता को मारते देखा।

घड़ी वैशाख की आई कृषक खुशहाल हो जायें,

भरे झोली गरीबों की फसल को पूजते देखा।

कभी उम्मीद का दामन नहीं तू छोड़ना ए मन,

निराशा में भी आशा को जगत में फैलते देखा।

निरोगी 'पूर्णिमा' तन-मन नहीं दिखता जमाने में ,

दवाओं के ही' बलबूते पे' साँसे थामते देखा।


डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।1/4/17

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