पोस्ट संख्या--3 खेत खलिहान औ' प्रांगण बरबस इंतजार करते रहे
गज़ल-3 पोस्ट संख्या--3
खेत खलिहान औ' प्रांगण बरबस इंतजार करते रहे ।
नन्हें मुन्नो की किलकारी सुनने को तरसते रहे।।
धरती भी मुरझा गई सूर्य की तपिश को पाकर।
आहें धरा की मिटाने को सितारे भी मचलते रहे।।
खोखले वादों की बुनियाद ही साकी कमजोर थी।
संगमरमर के जिस्म भी झूठे वादों की मार सहते रहे।।
एक-एक करके सब साथी चले गए देख रहा मुन्ना।
बदल रहें है औ' बदलेंगे हालात यही सब कहते रहे ।।
गरीबी,अनपढ़ता ,बाढ़ ,अकाल यां हो कारोना बीमारी।
दीप रोशनी के शिक्षा से ही' 'पूर्णिमा" हमेशा जलते रहे।।
डॉ पूर्णिमा राय, पंजाब
drpurnima01.dpr@gmail.com
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