पोस्ट संख्या- 32 क्रोध दिलों का दर्द बढ़ाए।
गज़ल- 32 पोस्ट संख्या- 32
क्रोध दिलों का दर्द बढ़ाए।
अपनों से अपने छुड़वाए।।
सूनापन वीरान जिंदगी,
बिना प्रेम के मरती जाए।।
आग-बबूला होकर मानव;
दूसरों को दुकख पहुँचाए।।
बात-बात पर करे लड़ाई;
भला-बुरा पहचान न पाए।।
अधर हँसी गायब हो जाती;
मुखड़ा भी उसका मुरझाए।।
क्रोधी जन हर राह-सफर में
धोखे पर धोखा ही खाए।।
क्रोध उजाड़े घर-आँगन को
स्नेह "पूर्णिमा" गगन सजाए।।
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