पोस्ट संख्या- 33 ये है कैसा सैलाब।

 गज़ल- 33 पोस्ट संख्या- 33


ये है कैसा सैलाब।

बाग में रोया गुलाब।।

घूमती सूई शक की;

दिल में उठ रहा अजाब।। 

शक एक मानसिक रोग;

नष्ट करता मन किताब।।

शक के घेरे में बँधा

मतिहीन चाहे शराब।।

छूट गये सभी साथी;

शक को न पालो जनाब।।

शक बिगाड़े स्वास्थय को;

नियरे न आये शबाब।।

बुद्धि का हो विकास 'पूर्णिमा'

तब हटे शक का नकाब।।


डॉ.पूर्णिमा रायअमृतसर।(पंजाब)

(29/12/16) 

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