पोस्ट संख्या- 35 जग की झूठी प्रीत,कामिनी चंचल माया।
गज़ल- 35 पोस्ट संख्या- 35
जग की झूठी प्रीत,कामिनी चंचल माया।
काहे का अभिमान,मिटे सुंदर यह काया।।
बचपन के दिन चार,कहाँ कोई अब भूले;
यौवन मद में यार,समय क्यों व्यर्थ गँवाया।।
रंग-बिरंगे फूल,जगत की फुलवारी में;
प्रेम-स्नेह की डोर,सजा मानव हर्षाया।।
दया धर्म ईमान,प्रेम की राह दिखाते;
उल्टे चलते लोग, सदा तकरार बढ़ाया।।
लूटपाट की नीति,जगत में आपाधापी;
आया मोदी राज ,मनुज ने धैर्य दिखाया।।।
सूने हैं बाज़ार, बैंक में मचती भगदड़;
मुश्किल मिलते नोट, राज मोदी का आया।।
पागल बना समीर,देखके चंचल गौरी;
मन में उठी तरंग ,संग में मेघा लाया।।
मन में रख विश्वास,उम्मीदें होंगी पूरी;
अँधियारे के बाद,उजाला है मुस्काया।।
डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।17/12/16
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