पोस्ट संख्या- 36जुबान से हो वार प्यार ,बरसात नहीं देखी।
गज़ल- 36 पोस्ट संख्या- 36
जुबान से हो वार प्यार ,बरसात नहीं देखी।
त्योहारों पर मिले खुशी, सौगात नहीं देखी।।
मात-पिता के बिना सजा, शादी का है मंडप ;
खिले हुये चहरों वाली, बारात नहीं देखी।।
वीर जवान सदा औरों, की खातिर जीते हैं;
सोचें अपने हित का ही ,वे बात नहीं देखी।।
मिट्टी के दीये बेच रहा, चँद सिक्कों की खातिर;
उस निर्धन ने दीवाली, की रात नहीं देखी।।
भिखमंगे धनवान बने ,दर-दर ठोकर खाते;
बेच रहे ईमान कभी, औकात नहीं देखी।।
दौड़-धूप में मानव को,आराम नहीं मिलता;
बाकी हैं अरमान "पूर्णिमा" रात नहीं देखी।।
...डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।
20/10/16
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