पोस्ट संख्या- 37फूल बगिया में खिले मन भा रहे।
गज़ल- 37 पोस्ट संख्या- 37
फूल बगिया में खिले मन भा रहे।
गीत भँवरे भी मिलन का गा रहे।।
मीन प्यासी नीर बिन है मर रही
मोर सावन देखकर अकुला रहे।।
आस की पगडंडियों पर बढ़ चलो;
सैंकड़ों राही निकलते जा रहे।।
पार सिन्धु को किया हनुमान ने;
राम सँग गुणगान उसका गा रहे।।
झूठ हारे सत्य की ही जीत हो;
पार रावण का अभी भी पा रहे।।
हौंसलों की भर उड़ानें "पूर्णिमा" ;
आसमाँ छूते परिन्दे भा रहे।।
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