पोस्ट संख्या- 38 दीन को मिलता नहीं अब प्यार है।।
गज़ल- 38 पोस्ट संख्या- 38
दीन को मिलता नहीं अब प्यार है।।
विश्व में फैला हुआ तकरार है।।(१)
बेचता मिट्टी के' दीपक साँझ में;
जेब खाली आ गया त्यौहार है।। (२)
दीप जलकर कर रहें हैं रोशनी;
दूर होता क्यों न ये अँधकार है।।(३)
ये पटाखों की लड़ी कहती सुनो;
शोर से ही जिंदगी बेज़ार है। (४)
लोग दीपक क्यों नहीं अब बालते;
जगमगाता चीन का बाज़ार है।।(६)
चल रहे दुश्मन सफल चालें तभी;
फैलता ये चीन का व्यापार है।।(७)
स्वार्थ में ही लिप्त रहते लोग जब;
तब न दिखता विश्व का करतार है।।
कैद से छुड़वा लिये बन्दी सभी;
सिक्ख गुरुओं को नमन हर बार है।।
धर्म की खातिर कटाए शीश भी;
सिंह वीरों से बचा संसार है।।
गम छिपा लो दूसरों को दो खुशी;
मुस्कुराहट से खिला संसार है।।(५)
फूल पत्तों में दिखे हर एक को ;
राम ,कृष्णा विष्णु का अवतार है।।
प्यार के उपहार से सजता चमन ;
प्यार ही हर धर्म का सार है।।(८)
वास लक्ष्मी का हुआ जब दोस्तो;
चाँद तारों सा सजा घर-बार है।।(९)
तम न बनता है किसी का मीत भी;
"पूर्णिमा " की प्रीत जग आधार है।।(१०)
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