पोस्ट संख्या- 39प्रेम को है समर्पित विधा गीतिका।

 गज़ल- 39 पोस्ट संख्या- 39



प्रेम को है समर्पित विधा गीतिका।

ओज भावों से' गर्वित विधा गीतिका।।

हास परिहास दिखता यहाँ भाव में ;

करती' मन को तरंगित विधा गीतिका।।

जोश से है चलें लेखकों की कलम;

कर रही भाव प्रेषित विधा गीतिका।।

हाल जग का दिखे लेखनी जब चले;

व्योम करती समाहित विधा गीतिका।।

धूप छाया सुहावन लगे मनचली;

सूर्य किरणों में लक्षित विधा गीतिका।।

धैर्य से मंजिलों को सदा सर करें;

काव्य राहों में वंदित विधा गीतिका।।

नीर अखियों से बहता दिखे गर कभी;

प्रेम बाँटे असीमित विधा गीतिका।।

आज हँसने को बेताब मन ये बहुत;

हो रही आज हर्षित विधा गीतिका।।

आसमाँ में दिखे "पूर्णिमा "की तरह;

ये रहेगी प्रकाशित विधा गीतिका।।

छू रही तेज कदमों से' अब ये गगन;

"पूर्णिमा" ज्ञान अर्जित विधा गीतिका।।

डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर

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