पोस्ट संख्या-4 ईद ,दिवाली हों या होली।
गज़ल-4 पोस्ट संख्या- 4
ईद ,दिवाली हों या होली।
प्रेम सिखाते हैं हमजोली।।
काहे वैर भरा नस-नस में ,
भाल लगाओ चंदन रोली।।
बेंध रहा जो अंतर्मन को,
छोड़ें हम नफरत की बोली।।
धर्म-कर्म हित आगे आयें,
मत बने बन्दूक की गोली।।
गाल गुलाबी नैन शराबी
भीग गये हैं दामन चोली।।
महक फिजाओं में बिखरी है,
घर-द्वार पर सजी रंगोली।।
कृष्ण मुरारी दीन-हीन के ,
सुख-समृद्धि से भर दो झोली।।
करे "पूर्णिमा " सदैव वंदन,
सुखी नज़र आये हर टोली।।
..डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब
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