पोस्ट संख्या- 43अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।

 गज़ल- 43 पोस्ट संख्या- 43



अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।

रक्त की बूँद को भी गिरने से बचाया जाए।।


बैर की आग में बस झुलसी हुई दिखती दुनिया;

प्यार के नूर से ही कुदरत को सजाया जाए।। 


सरसराहट सुनी पत्तों की तो डर जाए मनुज;

ख़ौफ के कहर से अब हर दिल को बचाया जाए।।


करवटें लेकर ही बीती औ'बीतेंगी रातें;

रूह को प्रेम की बगिया में भी घुमाया जाए।।


मैं बुरा,मन यह बुरा हर पल ही ढूँढे है बुरा;

आईना " पूर्णिमा " में खुद को भी दिखाया जाए।।


डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।

6/2/17


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