पोस्ट संख्या- 44बहुत हो चुकी दिल्लगी ये तुम्हारी तुम्हीं को हमेशा मनाते रहें हम।
गज़ल- 44 पोस्ट संख्या- 44
बहुत हो चुकी दिल्लगी ये तुम्हारी तुम्हीं को हमेशा मनाते रहें हम
बड़ी देर कर दी सनम आते' आते तुम्हीं से ये' नजरें मिलाते रहें हम।।
बिना बात के रूठ जाना तुम्हारा कभी खुद को हमसे छिपाना तुम्हारा;
अदायें वफायें जफाओं के किस्से हवाओं को ही बस सुनाते रहें हम।।
धड़कने लगी आज धड़कन हमारी गरजते हैं मेघा ज्यों घन घन गगन में;
खिलेंगी बहारें जवाँ हैं उमंगे नशा प्रीत का ही चढ़ाते रहें हम।।
हसीं रात तारों भरी संग चन्दा तुम्हीं को निहारे तुम्हीं को पुकारे
मुहब्बत तुम्हीं हो इबादत तुम्हीं हो इनायत तुम्हारी ही' गाते रहें हम।।
करे "पूर्णिमा" प्रार्थना आज भगवन दिलों का ये रिश्ता कभी भी न टूटे;
भुलाकर गिले और शिकवे तुम्हारे मुहब्बत से' नफरत मिटाते रहें हम।।
डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब
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