पोस्ट संख्या- 45 बेवजह हम कहीं आते-जाते नहीं।
गज़ल- 45 पोस्ट संख्या- 45
बेवजह हम कहीं आते-जाते नहीं।
बात बेकार की हम सुनाते नहीं।।
डूबते को बचायें चलो मिलके सब;
गैऱ को तो कभी हम बुलाते नहीं।।
आसरा ढूँढते सच्चे दिल का सभी;
दो कदम फासला क्यों घटाते नहीं।।
लोग देखें तमाशा बड़े शौंक से;
जख्म पर क्यों ये' मरहम लगाते नहीं।।
सिन्धु जल से पुकारे मुझे हाथ दो ;
नाव अटकी भँवर में बचाते नहीं।।
मौत के इन पलों में तुम्हीं साथ हो;
सात जन्मों की यूँ कसमें खाते नहीं।।
ढल गया है दिवस सांझ ताउम्र की;
"पूर्णिमा" को गगन में सजाते नहीं।।
...डॉ.पूर्णिमा राय
अमृतसर(पंजाब)
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