पोस्ट-सँख्या-46 तेरे ख़त का ही इंतजार है।
पोस्ट-सँख्या-46 ग़ज़ल
तेरे ख़त का ही इंतजार है।
शायद इसी का नाम प्यार है।।
ऊँगलियाँ भी थक गई अब तो,
कलम की स्याही पे एतबार है।।
बहुत ढूँढा न मिला फिर भी,
ख़त ने किया दिल बेकरार है।।
माना नहीं है जमाना ख़त का
ख़त के लफ़्ज़ों में सच्चा इज़हार है
चलो फिर से चलें पुरानी राहों पे,
मोबाईल से बढ़ा सिर्फ तकरार है।।
ख़त लिखूँ फिर हुई तमन्ना "पूर्णिमा"
कलम के दम पे बदलता संसार है।।
डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब
26/7/23 लेखन तिथि
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