कुदरत (कविता

 कुदरत (कविता)


पोस्ट संख्या -58

बारिश की बूंदें भी

 शोर कर रहीं 

उथल-पुथल हो रही है कुदरत में

या इस बेजान दिल में !

हवाओं ने राहत दी तो है थोड़ी

 कमबख़्त अपनों ने रुलाने की जिद्द 

न छोड़ी अब तक!!

हल्की टहनियाँ 

 संभाल न पा रही वज़न अपना

जो लिपटी चिपकी हुई हैं अपने 

पौधे से

वे मन्द-मन्द मुस्कुरा रही हैं 

मस्ती में !!

चाहे तन भीग रहे हैं अकस्मात् 

बारिश में मगर

गर्मी में वर्षा की आमद

कह रही है कि

मन की शीतलता से ही 

बचेगा संसार !!

डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब 





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