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Showing posts from June, 2023

पोस्ट संख्या- 45 बेवजह हम कहीं आते-जाते नहीं।

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  गज़ल- 45 पोस्ट संख्या- 45 बेवजह हम कहीं आते-जाते नहीं। बात बेकार की हम सुनाते नहीं।। डूबते को बचायें चलो मिलके सब; गैऱ को तो कभी हम बुलाते नहीं।। आसरा ढूँढते सच्चे दिल का सभी; दो कदम फासला क्यों घटाते नहीं।। लोग देखें तमाशा बड़े शौंक से; जख्म पर क्यों ये' मरहम लगाते नहीं।। सिन्धु जल से पुकारे मुझे हाथ दो ; नाव अटकी भँवर में बचाते नहीं।। मौत के इन पलों में तुम्हीं साथ हो; सात जन्मों की यूँ कसमें खाते नहीं।। ढल गया है दिवस सांझ ताउम्र की; "पूर्णिमा" को गगन में सजाते नहीं।। ...डॉ.पूर्णिमा राय अमृतसर(पंजाब)

पोस्ट संख्या- 44बहुत हो चुकी दिल्लगी ये तुम्हारी तुम्हीं को हमेशा मनाते रहें हम।

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 गज़ल- 44 पोस्ट संख्या- 44 बहुत हो चुकी दिल्लगी ये तुम्हारी तुम्हीं को हमेशा मनाते रहें हम ब ड़ी देर कर दी सनम आते' आते तुम्हीं से ये' नजरें मिलाते रहें हम।। बिना बात के रूठ जाना तुम्हारा कभी खुद को हमसे छिपाना तुम्हारा; अदायें वफायें जफाओं के किस्से हवाओं को ही बस सुनाते रहें हम।। धड़कने लगी आज धड़कन हमारी गरजते हैं मेघा ज्यों घन घन गगन में; खिलेंगी बहारें जवाँ हैं उमंगे नशा प्रीत का ही चढ़ाते रहें हम।। हसीं रात तारों भरी संग चन्दा तुम्हीं को निहारे तुम्हीं को पुकारे मुहब्बत तुम्हीं हो इबादत तुम्हीं हो इनायत तुम्हारी ही' गाते रहें हम।। करे "पूर्णिमा" प्रार्थना आज भगवन दिलों का ये रिश्ता कभी भी न टूटे; भुलाकर गिले और शिकवे तुम्हारे मुहब्बत से' नफरत मिटाते रहें हम।। डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब

पोस्ट संख्या- 43अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।

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  गज़ल- 43 पोस्ट संख्या- 43 अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए। रक्त की बूँद को भी गिरने से बचाया जाए।। बैर की आग में बस झुलसी हुई दिखती दुनिया; प्यार के नूर से ही कुदरत को सजाया जाए।।  सरसराहट सुनी पत्तों की तो डर जाए मनुज; ख़ौफ के कहर से अब हर दिल को बचाया जाए।। करवटें लेकर ही बीती औ'बीतेंगी रातें; रूह को प्रेम की बगिया में भी घुमाया जाए।। मैं बुरा,मन यह बुरा हर पल ही ढूँढे है बुरा; आईना " पूर्णिमा " में खुद को भी दिखाया जाए।। डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर। 6/2/17

पोस्ट संख्या- 42उड़ती है मुख की रंगत नफरत के रास्ते।

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  गज़ल- 42 पोस्ट संख्या- 42 उड़ती है मुख की रंगत नफरत के रास्ते। मिलती सिर्फ मुहब्बत इबादत के रास्ते।। आँखों में बस गये थे पहली नज़र में जो, उतरे वो दिल में देखो शराफत के रास्ते।। भोली अदायें रूख पे गिरा एक नकाब है, नाज़ुक जवानी ढूँढे शरारत के रास्ते।। कैसा ये दौर आया हुये बेवफा सनम, गैरों से कब मिलेंगे हिफाजत के रास्ते।। चुपचाप मन ने तुमको किया था कबूल जब, मिलने लगी थी रूहें नज़ाकत के रास्ते।। दूरी बढ़ी दिलों में खत्म हो गया जहाँ, खुलने लगे हैं खुद ही अदावत के रास्ते।। नव "पूर्णिमा" गगन को रोशन न कर सकी, धरती भी चल पड़ी अब बगावत के रास्ते।। डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर 20/9/17

पोस्ट संख्या- 41भक्ति भावों से दुनिया का उद्धार हो।

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  गज़ल- 41 पोस्ट संख्या- 41 भक्ति भावों से दुनिया का उद्धार हो। सत्य राहों से सजता ये संसार हो।। बीज बीजें सदा हम ये इन्सानियत; प्रेम उपजा खिला तब ही व्यवहार हो।। चैन की बांसुरी ये है बजती तभी।; मन से होता अगर दूर तकरार हो।। सात रंगों की चाहत हैं रखते सभी; "पूर्णिमा" से ही आलम ये गुलजार हो।। डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब

पोस्ट संख्या- 40हँसमुख चेहरा,रूप नूरानी,प्यार भरी तेरी मुस्कानों का।

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  गज़ल- 40 पोस्ट संख्या- 40 हँसमुख चेहरा,रूप नूरानी,प्यार भरी तेरी मुस्कानों का। कर्ज चुकाया जा नहीं सकता,गुरुदेव तेरे एहसानों का।।  बिन तेरे अब मेरे सत्गुरु ,मेरे इस जीवन का मोल नहीं; बिना रूह के प्राण अधूरे,तुम संग सजे मन अरमानों का। रोम-रोम पुलकित हर जन का.प्रेम स्नेह की धन- दौलत बख्शी;  नहीं जगत में कोई अपना ,बिन तेरे हम जैसे बेगानों का।। माटी की काया थी हमरी ,कंचन पारस तुम थे सत्गुरु; भवसागर से पार उतारा,अनजान सफर हम अनजानों का  शरण "पूर्णिमा" सत्गुरु तेरी,अपने बचपन में ही आई है; अपार अनंत असीम कृपा और आँगन सजा वरदानों का । डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर(पंजाब),20/11/16

पोस्ट संख्या- 39प्रेम को है समर्पित विधा गीतिका।

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  गज़ल- 39 पोस्ट संख्या- 39 प्रेम को है समर्पित विधा गीतिका। ओज भावों से' गर्वित विधा गीतिका।। हास परिहास दिखता यहाँ भाव में ; करती' मन को तरंगित विधा गीतिका।। जोश से है चलें लेखकों की कलम; कर रही भाव प्रेषित विधा गीतिका।। हाल जग का दिखे लेखनी जब चले; व्योम करती समाहित विधा गीतिका।। धूप छाया सुहावन लगे मनचली; सूर्य किरणों में लक्षित विधा गीतिका।। धैर्य से मंजिलों को सदा सर करें; काव्य राहों में वंदित विधा गीतिका।। नीर अखियों से बहता दिखे गर कभी; प्रेम बाँटे असीमित विधा गीतिका।। आज हँसने को बेताब मन ये बहुत; हो रही आज हर्षित विधा गीतिका।। आसमाँ में दिखे "पूर्णिमा "की तरह; ये रहेगी प्रकाशित विधा गीतिका।। छू रही तेज कदमों से' अब ये गगन; "पूर्णिमा" ज्ञान अर्जित विधा गीतिका।। डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर

पोस्ट संख्या- 38 दीन को मिलता नहीं अब प्यार है।।

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  गज़ल- 38 पोस्ट संख्या- 38 दीन को मिलता नहीं अब प्यार है।। विश्व में फैला हुआ तकरार है।।(१) बेचता मिट्टी के' दीपक साँझ में; जेब खाली आ गया त्यौहार है।। (२) दीप जलकर कर रहें हैं रोशनी; दूर होता क्यों न ये अँधकार है।।(३) ये पटाखों की लड़ी कहती सुनो; शोर से ही जिंदगी बेज़ार है। (४) लोग दीपक क्यों नहीं अब बालते; जगमगाता चीन का बाज़ार है।।(६) चल रहे दुश्मन सफल चालें तभी; फैलता ये चीन का व्यापार है।।(७) स्वार्थ में ही लिप्त रहते लोग जब; तब न दिखता विश्व का करतार है।। कैद से छुड़वा लिये बन्दी सभी; सिक्ख गुरुओं को नमन हर बार है।। धर्म की खातिर कटाए शीश भी; सिंह वीरों से बचा संसार है।। गम छिपा लो दूसरों को दो खुशी; मुस्कुराहट से खिला संसार है।।(५) फूल पत्तों में दिखे हर एक को ; राम ,कृष्णा विष्णु का अवतार है।। प्यार के उपहार से सजता चमन ; प्यार ही हर धर्म का सार है।।(८) वास लक्ष्मी का हुआ जब दोस्तो; चाँद तारों सा सजा घर-बार है।।(९) तम न बनता है किसी का मीत भी; "पूर्णिमा " की प्रीत जग आधार है।।(१०)

पोस्ट संख्या- 37फूल बगिया में खिले मन भा रहे।

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  गज़ल- 37 पोस्ट संख्या- 37 फूल बगिया में खिले मन भा रहे। गीत भँवरे भी मिलन का गा रहे।। मीन प्यासी नीर बिन है मर रही मोर सावन देखकर अकुला रहे।। आस की पगडंडियों पर बढ़ चलो; सैंकड़ों राही निकलते जा रहे।। पार सिन्धु को किया हनुमान ने; राम सँग गुणगान उसका गा रहे।। झूठ हारे सत्य की ही जीत हो; पार रावण का अभी भी पा रहे।। हौंसलों की भर उड़ानें "पूर्णिमा" ; आसमाँ छूते परिन्दे भा रहे।।

पोस्ट संख्या- 36जुबान से हो वार प्यार ,बरसात नहीं देखी।

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  गज़ल- 36 पोस्ट संख्या- 36 जुबान से हो वार प्यार ,बरसात नहीं देखी। त्योहारों पर मिले खुशी, सौगात नहीं देखी।। मात-पिता के बिना सजा, शादी का है मंडप ; खिले हुये चहरों वाली, बारात नहीं देखी।। वीर जवान सदा औरों, की खातिर जीते हैं; सोचें अपने हित का ही ,वे बात नहीं देखी।। मिट्टी के दीये बेच रहा, चँद सिक्कों की खातिर; उस निर्धन ने दीवाली, की रात नहीं देखी।। भिखमंगे धनवान बने ,दर-दर ठोकर खाते; बेच रहे ईमान कभी, औकात नहीं देखी।। दौड़-धूप में मानव को,आराम नहीं मिलता; बाकी हैं अरमान "पूर्णिमा" रात नहीं देखी।। ...डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर। 20/10/16

पोस्ट संख्या- 35 जग की झूठी प्रीत,कामिनी चंचल माया।

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गज़ल- 35 पोस्ट संख्या- 35 जग की झूठी प्रीत,कामिनी चंचल माया। काहे का अभिमान,मिटे सुंदर यह काया।। बचपन के दिन चार,कहाँ कोई अब भूले; यौवन मद में यार,समय क्यों व्यर्थ गँवाया।।    रंग-बिरंगे फूल,जगत की फुलवारी में; प्रेम-स्नेह की डोर,सजा मानव हर्षाया।। दया धर्म ईमान,प्रेम की राह दिखाते; उल्टे चलते लोग, सदा तकरार बढ़ाया।। लूटपाट की नीति,जगत में आपाधापी; आया मोदी राज ,मनुज ने धैर्य दिखाया।।। सूने हैं बाज़ार, बैंक में मचती भगदड़; मुश्किल मिलते नोट, राज मोदी का आया।। पागल बना समीर,देखके चंचल गौरी; मन में उठी तरंग ,संग में मेघा लाया।। मन में रख विश्वास,उम्मीदें होंगी पूरी; अँधियारे के बाद,उजाला है मुस्काया।। डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।17/12/16 

पोस्ट संख्या- 34निर्धन के बच्चों को भिक्षा में मिठाई मिली।

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गज़ल- 34 पोस्ट संख्या- 34 निर्धन के बच्चों को भिक्षा में मिठाई मिली। शीत हवा में उनको सुन्दर सी रजाई मिली।। बहुत खुश हुआ बालक खेल दिखाकर जादू का ; दौर-ए- नोटबंदी में हक की कमाई मिली।। बुजुर्ग को सड़क पार करवा के मिला सम्मान; दुआ से भरी झोली नसीब में भलाई मिली।। अन्धा बनके लूट रहा था जो राहजनों को; छल-फरेब के बदले में उसको बुराई मिली।। जीवन बिताया माँ बाप की सेवा में जिसने ; शाम-ओ -सहर उसे माँ हाथ की मलाई मिली।। हर क्षण अपना श्रम में लगाते हैं जो "पूर्णिमा " वक्त की घड़ी से सजी उन्हीं की कलाई मिली।। .डॉ.पूर्णिमा रायअमृतसर(पंजाब

पोस्ट संख्या- 33 ये है कैसा सैलाब।

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  गज़ल- 33 पोस्ट संख्या- 33 ये है कैसा सैलाब। बाग में रोया गुलाब।। घूमती सूई शक की; दिल में उठ रहा अजाब।।  शक एक मानसिक रोग; नष्ट करता मन किताब।। शक के घेरे में बँधा मतिहीन चाहे शराब।। छूट गये सभी साथी; शक को न पालो जनाब।। शक बिगाड़े स्वास्थय को; नियरे न आये शबाब।। बुद्धि का हो विकास 'पूर्णिमा' तब हटे शक का नकाब।। डॉ.पूर्णिमा रायअमृतसर।(पंजाब) (29/12/16) 

पोस्ट संख्या- 32 क्रोध दिलों का दर्द बढ़ाए।

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गज़ल- 32 पोस्ट संख्या- 32  क्रोध दिलों का दर्द बढ़ाए। अपनों से अपने छुड़वाए।। सूनापन वीरान जिंदगी, बिना प्रेम के मरती जाए।। आग-बबूला होकर मानव; दूसरों को दुकख पहुँचाए।। बात-बात पर करे लड़ाई; भला-बुरा पहचान न पाए।। अधर हँसी गायब हो जाती; मुखड़ा भी उसका मुरझाए।। क्रोधी जन हर राह-सफर में धोखे पर धोखा ही खाए।। क्रोध उजाड़े घर-आँगन को स्नेह "पूर्णिमा" गगन सजाए।। ****************************************

पोस्ट संख्या- 31 क्यों दिलों से कभी दिल मिलाते नहीं।

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  गज़ल- 31 पोस्ट संख्या- 31 क्यों दिलों से कभी दिल मिलाते नहीं। लोग त्योहार मिल कर मनाते नहीं।। शीत की रात में भी था' बेचैन मन; वीर त्योहार पर घर क्यों' आते नहीं।। झूम कर लहलहाये फसल खेत में; क्यों किसानों की' मुश्किल मिटाते नहीं।। खूबसूरत लम्हें गुम हुये प्यार के; वैर नफरत को' मन से भगाते नहीं।। हौंसलों की उड़ानें वही भर रहे; वक्त के आगे' सिर जो झुकाते नहीं।। ठोकरों से सजी है सदा जिन्दगी; दुक्ख में नैन आँसू बहाते नहीं।। अनकही बात दिल से कही" पूर्णिमा"; दोस्त अपना हमें क्यों बनाते नहीं।। डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।14/1/17

पोस्ट संख्या- 30 जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ खुलासा देखिये।

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  गज़ल- 30 पोस्ट संख्या- 30 जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ खुलासा देखिये। प्यार में रुस्वाइयों का मत तमाशा देखिये।। चीखते चिल्ला रहे सब आज बहरे लोग हैं; आपबीती कह न पाते मन निराशा देखिये।। धुंध सतही भीतरी मन की परत थी खुल रही; बादलों की ओट में सजता कुहासा देखिये।। बोल मीठे मुख पे रखकर माँगते यह वोट हैं ; राजनैतिक चाल का झूठा दिलासा देखिये।। आसमाँ को छू रहे जिन्दादिली पहचान है; "पूर्णिमा" युग मानवों की यह जिज्ञासा देखिये।। .डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।9/1/17

पोस्ट संख्या- 29 पायल मेरी करे पुकार।।

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  गज़ल- 29 पोस्ट संख्या- 29 पायल मेरी करे पुकार।। जी भर कर लो हमको प्यार। धड़कन दिल की लेते थाम, ठुमक-ठुमक जब चलती नार।। पायल से सजते हैं पाँव, चाँदी की पहनाओ यार।। बहू का जब हो गृह प्रवेश, तब पायल का हो उपहार।। पायल में घुँघरु हैं तीन, सुखद पलों का हो अभिसार।। है डिजाइनर पायल आज बढ़े "पूर्णिमा"पाँव शृंगार।। डॉ.पूर्णिमा राय

पोस्ट संख्या- 28 सुनना सदैव गरीब की आहों को।

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गज़ल- 28 पोस्ट संख्या- 28 सुनना सदैव गरीब की आहों को। फूल से सजा दो उसकी राहों को।। मत आँख चुराना दीन को देखकर , करीब से मिलाओ इन निगाहों को।। प्रेम पगा मन करता है इंतजार, डालो गले में प्रेम से बाँहों को।। लानत उनपर जो बेच रहे जमीर , मिले सजा जग में झूठे ग्वाहों को।। प्राकृतिक संपदा का हो संरक्षण , बचायें "पूर्णिमा" बन्दरगाहों को।। डॉ०पूर्णिमा राय,

पोस्ट संख्या- 27 सुंदर कोमल सपनों की बारात गुजर गई जानाँ।

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  गज़ल- 27 पोस्ट संख्या- 27 सुंदर कोमल सपनों की बारात गुजर गई जानाँ। टिमटिमाते तारों वाली रात गुजर गई जानाँ।। पत्थर दिल पिघला करते हैं अब ना देखे हमने, फूल पँखुड़ी बूँद ओस सौगात गुजर गई जानाँ।। वक्त कभी ना रहा एक सा सुख-दुख आते जाते, साथ तुम्हारे दुक्ख की हर बात गुजर गई जानाँ।। कसमें वादे भूल गया सब यौवन की मस्ती में , स्नेह प्रेम की लौ जगाती मात गुजर गई जानाँ।। चँद सिक्कों की खातिर रिश्ते टूट "पूर्णिमा" जाते, दिल से दिल की सच्ची मुलाकात गुजर गई जानाँ।। डॉ.पूर्णिमा राय(3/4/17) 

पोस्ट संख्या- 26 मुहब्बत के चिरागों को अँधेरा चीरते देखा।

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  गज़ल- 26 पोस्ट संख्या- 26 मुहब्बत के चिरागों को अँधेरा चीरते देखा। जवानों को हवा का रुख हमेशा मोड़ते देखा।। नहीं अभिशाप निर्धनता समझ जिनको ये' आ जाये, उन्हीं की मेघ गर्जन को गगन में गूँजते देखा।। बिना माँझी के' भवसागर न नैया पार अब होगी , भँवर में डूबते जन को सहारा ढूँढते देखा। असर कुछ इस तरह छाया युवाओं पर नशे का अब , बिना श्रम के ही' सपनों को नयन में पालते देखा। सफाई का चला अभियान घर तो चमचमाते थे, गली कीचड़ सनी बेहद मनुज को हाँफते देखा।  जिसे गोदी खिलाया था वही हथियार से खेले, कलेजे के हुये टुकड़े पिता को मारते देखा। घड़ी वैशाख की आई कृषक खुशहाल हो जायें, भरे झोली गरीबों की फसल को पूजते देखा। कभी उम्मीद का दामन नहीं तू छोड़ना ए मन, निराशा में भी आशा को जगत में फैलते देखा। निरोगी 'पूर्णिमा' तन-मन नहीं दिखता जमाने में , दवाओं के ही' बलबूते पे' साँसे थामते देखा। डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।1/4/17

पोस्ट संख्या- 25 प्यार का रोग अब हम लगाते नहीं।

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  गज़ल- 25 पोस्ट संख्या- 25 प्यार का रोग अब हम लगाते नहीं। लोग दिल से कभी दिल मिलाते नहीं।। सीखने की रखें चाहतें आज सब, पर मगर खुद अहम् को मिटाते नहीं।। खूबसूरत हुई साँझ कहने लगी, प्रेम दीपक घरों में जलाते नहीं।। पाँव धरती पे टिकते नहीं आज हैं, यह जमाने को हम क्यों बताते नहीं।। जिन्दगी मेहमाँ चार दिन की मिली, खुशनुमा इन लम्हों को सजाते नहीं।।  आरजू बस यही अब न कुछ चाहिये, हर खुशी 'पूर्णिमा' में मनाते नहीं।। डॉ.पूर्णिमा राय,पंजाब

पोस्ट संख्या- 24 आज दिल आशिकाना हुआ।

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गज़ल- 24 पोस्ट संख्या- 24 आज दिल आशिकाना हुआ। यार का आना-जाना हुआ।।(1) साँवरे से मिले नैन जब, रूह का भी ठिकाना हुआ।(2) मोह माया करे तंग मन, संग तन भी निशाना हुआ।(3) उड़ रहे गेसुओं की महक, से गगन भी दिवाना हुआ।(4) भक्ति रस की बही धार जब नाम सुमिरन खजाना हुआ।(5) भूलकर इश्क की पीर अब, दर-ब-दर दिल लगाना हुआ।(6) स्वार्थ दौलत भरी जेब में, बस अहम् का जमाना हुआ।।(7) धूप उजली खिली साँझ भी चाँद भी शायराना हुआ।।(8) 'पूर्णिमा" में दिखा चाँद यूँ, रूप यौवन सुहाना हुआ।(9) डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।( 29/4/17)  *****************************

पोस्ट संख्या- 23 जनता को महज़ मलाल हो रहा है।

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  गज़ल- 23 पोस्ट संख्या- 23 जनता को महज़ मलाल हो रहा है। भ्रष्टाचार का कमाल हो रहा है।। बिकने लगे जमीर चंद सिक्कों में, हर परिवार में बवाल हो रहा है।। लूट रहे नेता दो-दो हाथों से, सरेआम बकरा हलाल हो रहा है।। परदे में सज रहे किरदार देखो, हैवानियत में धमाल हो रहा है।। सत्य की नस-नस तड़प रही जगत में, झूठ हर पल बेमिसाल हो रहा है।। इंसानियत को ओढ़ा हुआ जिसने , उसी मानव पर सवाल हो रहा है।। कामचोर ,आलसी, निकम्मा है जो, वो दिन-रात मालोमाल हो रहा है।। खुशामद सज रही है ऊँचे पद पर, विद्वान का इंतकाल हो रहा है।। सलाम है देशप्रेम के जज्बे को  "पूर्णिमा" में गाल लाल हो रहा है।। डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर। (19/6/17) 

पोस्ट संख्या- 22 तेरी आवारगी हमको सनम भाने लगी है।

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  गज़ल-22 पोस्ट संख्या- 22 तेरी आवारगी हमको सनम भाने लगी है। मुहब्बत के तराने जिंदगी गाने लगी है।। गगन में चाँद निकला यूँ लगा तुम मुस्कुराये, खुमारी इस धरा पर आज फिर छाने लगी है।। हवा ने रूख बदला जबसे तुमने मुंह मोड़ा , अधूरी बात तेरी याद अब आने लगी है।। इबादत हो गई मेरी झलक तेरी जो पाई , सुकूं के इन पलों में जान अब जाने लगी है।। नज़ाकत "पूर्णिमा "ने न दिखाई है कभी भी, अमावस रात को भी संग में लाने लगी है।। डॉ पूर्णिमा राय ,पंजाब  (23/6/18) 

पोस्ट संख्या- 21 जिन्दगी बेवजह मुस्कुराती नहीं।

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  गज़ल- 21 पोस्ट संख्या- 21 जिन्दगी बेवजह मुस्कुराती नहीं। ये वफा अब हमें रास आती नहीं।। बिन तुम्हारे अधूरे सभी ख्वाब हैं। रात में चाँदनी भी लुभाती नहीं।। छोड़ कर जो गये लौट कर आयेंगे। चैन की नींद फिर भी क्यों' भाती नहीं।। बोल कड़वे लगे दिल बहुत साफ था, राज दिल का कभी भी बताती नहीं।। कुछ निशां " पूर्णिमा " इतने गहरे हुये, याद दिल से तुम्हारी क्यों जाती नहीं।। डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।(2/4/17) 

पोस्ट संख्या- 20 हुई दस्तक बहारों की निखरना आ गया हमको।

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  गज़ल- 20 पोस्ट संख्या- 20 हुई दस्तक बहारों की निखरना आ गया हमको। चली पतझड़ हवायें जब सिमटना आ गया हमको।। तुम्हारी बेरुखी को ही कभी हम जीत ना पाये, जगत के घात-प्रतिघातों से लड़ना आ गया हमको।। हवायें चल पड़ें विपरीत फिर भी हम न घबराते , खिलाफत करने वालों को कुचलना आ गया हमको।। हमेशा बात को अपनी घुमाते लोग क्यों जग में, हुये चर्चे फिजाओं में समझना आ गया हमको।। बहुत ही लड़खड़ाते पाँव जब विपदा घनी आये, अपाहिज पर पड़ी नजरें सँभलना आ गया हमको।। कमी औरों की ही देखी न देखी खूबियाँ हमने, किसी का आसरा बनके सुधरना आ गया हमको।। चमन की लूटकर खुशियाँ कभी आँगन नहीं फलते, दिखाकर "पूर्णिमा" नभ में चमकना आ गया हमको।। डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।, (8/7/17 को लिखी) 

पोस्ट संख्या- 19संघर्ष ही नारी का असली शृंगार है

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  गज़ल- 19 पोस्ट संख्या- 19 संघर्ष ही नारी का असली शृंगार है। भरा हुआ नारी में असीम प्यार है।। l हक के लिये उठाती जब आवाज़, बदल जाता लोगों का व्यवहार है।। उसकी मासूमियत नहीं है कमजोरी , चण्डी दुर्गा का रूप वह साकार है।। नारी न नारी की करे जड़ें खोखलीें, नारी के बिना साकी अधूरा संसार है।। सिक्कों की खनक से कीमती मुस्कान, मुस्कान नारी की जीवन का आधार है।। घर ,परिवार, समाज, देश और राष्ट्र पर, नारी ने ही किया "पूर्णिमा  उपकार है। डॉ.पूर्णिमा राय,पंजाब 19/5/23

पोस्ट संख्या- 18 बड़े चालाक जग के लोग शीघ्र ही समझ जाऊँगी

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  गज़ल-18 पोस्ट संख्या- 18 बड़े चालाक जग के लोग शीघ्र ही समझ जाऊँगी, कभी ना ठोकरे अब दर-ब-दर की मैं खाऊँगी। मनुज सहमा हुआ है शिकन चेहरे पे दिखती, चिराग-ए रोशनी करके अंधेरों को हराऊँगी। अकेले चल मुसाफिर सोच न कि तू अकेला है, न होगा साथ गर कोई तो भी मैं मुस्कुराऊँगी। हमेशा एक सा न वक्त रहता दोस्तो जग में, वक्त के संग चलकर ही फर्ज अपना निभाऊँगी। भटक कर रास्ता अपना जो बुद्धि हीन हो जाते, जलाकर ज्ञान का दीपक दिशा उनको दिखाऊँगी। बिताना जिंदगी हर पल "पूर्णिमा "कर्मनिष्ठा से, जमीं पर रोशनी बिखरा गगन को फिर सजाऊँगी। डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब

पोस्ट संख्या- 17 मेरे लफ़्ज़ों में कोई हिसाब नहीं।

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गज़ल- 17 पोस्ट संख्या- 17  मेरे लफ़्ज़ों में कोई हिसाब नहीं।  दिल में अब बचा अजाब नहीं।।  नशा होता है बस पीने से ही,  अब पाक हुस्न ओ-शबाब नहीं।।  भोलेपन पर जो मर मिटे,  ऐसा जहान में आफताब नहीं।।  सब अधूरें हैं चाहतें अधूरी,  पूरे किस्से वाली किताब नहीं।।  हाल-ए-दिल सुनाऊँ किसको,  "पूर्णिमा"जग में कोई महताब नहीं।।  डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब

पोस्ट संख्या--16 प्यार एक बार नहीं क्यों बार-बार हो जाता है।

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  गज़ल- 16 पोस्ट संख्या--16 प्यार एक बार नहीं क्यों बार-बार हो जाता है। न चाहते हुए भी उनसे तकरार हो जाता है।।  धूप की तपिश से भी जला न बदन कभी मेरा,  तेरे तंज उलाहनों से मन तार-तार हो जाता है।।  सदा ही साफ पाक नीयत से जो करते बातें,  वही औरों की नज़र में कसूरवार हो जाता है।।  हमेशा खुद को बेकसूर समझ लेते जो लोग,  वे सही हैं,सही होंगें,उनको एतबार हो जाता है।।  किस्मत पे नहीं अपने कर्मों पे कर गर्व 'पूर्णिमा' निस्वार्थ सेव्य भाव से ईश्वर भी यार हो जाता है।  डॉ.पूर्णिमा राय,पंजाब 10/6/23

पोस्ट संख्या- 15 रूह का कोई दिवाना हो गया होता।

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  गज़ल-15 पोस्ट संख्या- 15 रूह का कोई दिवाना हो गया होता। आज अपना ये जमाना हो गया होता।(1) भूल जाते हर गिले औ' मिलते' जब यह दिल खार में भी गुल सजाना हो गया होता।।(2) राष्ट्र हित में झुकते जब सिजदे में हरेक सिर, आह में भी मुस्कुराना हो गया होता।।(3) धूप उतरी है सड़क पर पाँव भी नंगे, छाँव का भी झिलमिलाना हो गया होता(4) राह में मिलते मुसाफिर रोज़ ही लाखों, खुशनुमा मंजिल पे' जाना हो गया होता।(5) फूल पर भी गर्द दिखती आज उपवन में, काश,काँटों का निशाना हो गया होता।।(6) गम अँधेरे जिंदगी में छाये क्यों गहरे, "पूर्णिमा" में जगमगाना हो गया होता(7) डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।

पोस्ट संख्या- 14 नफरतों का शहर देख लो

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गज़ल-14 पोस्ट संख्या- 14   नफरतों का शहर देख लो रो रहा हर बशर देख लो।। लाश बेटे की है काँधे पे, माँ का लख्ते जिगर देख लो।। आज बोझिल हुई साँस भी, जिन्दगी की डगर देख लो।। रोज कानून बनते नये, चोर भी है निडर देख लो।। रूग्ण काया बिना पूत के, बाप का अब गुजर देख लो।। तेज रफ्तार सी होड़ में, हादसों का नगर देख लो।। आज मजबूर हर आदमी, टैक्स का यह असर देख लो।। बात धन से ही आगे बढ़े, आज की यह खबर देख लो।। मुस्कुराहट मिलेगी तभी, प्यार में ही गुजर देख लो।। गम अँधेरे बिगाड़ें न कुछ, "पूर्णिमा" का सफर देख लो।। डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर,

पोस्ट संख्या- 13 तुम्हारा साथ छूटा जब जमाना हो गया दुश्मन।

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गज़ल-13 पोस्ट संख्या- 13   तुम्हारा साथ छूटा जब जमाना हो गया दुश्मन। अकेलापन खटकता है नहीं खिलता ये मन गुलशन ।। नहीं चाहा कभी भी गैर का जग में बुरा हमने, हमारी इस अच्छाई से नहीं बरसा कभी भी घन।। अजब ये खेल किस्मत का दिलों को दूर कर देता, निभाई दुश्मनी उसने जिसे अर्पित किया यह तन।। दिया जब साथ सच का तो हुयी हलचल जमाने में, बड़ा बेदर्द था जालिम उड़ा कर ले गया सब धन।। खड़े ऊँचाई पर अब तुम तुम्हें कैसे पुकारेंगे , गिला ये "पूर्णिमा"करती सुनो दिल की मिरे धड़कन।। डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर(पंजाब)

पोस्ट संख्या-12 बुजुर्ग घर की शान है प्यारे।

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गज़ल-12 पोस्ट संख्या-12   बुजुर्ग घर की शान है प्यारे। बेटा बेटी समान है प्यारे।। नन्हीं कली ने हँसकर कहा । फूल कुल की आन है प्यारे।। गम भरे हर दिल को अब । प्यार का अरमान है प्यारे।। बढ़ रही बेचैनियाँ बस। न दिखी मुस्कान है प्यारे।। दिवस रूठे तन भी जर्जर । दिल अभी तक जवान है प्यारे।। अम्बर संग धरती डोल रही। आया भारी तूफान है प्यारे।। मिली खुशी हर आँगन महका। ईश्वर का वरदान है प्यारे।। सजी" पूर्णिमा"नील गगन में। साथ मेरा ईमान है प्यारे।। डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर

पोस्ट संख्या- 11 हमें घर को सजाना आ गया है

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  गज़ल-11पोस्ट संख्या- 11 हमें घर को सजाना आ गया है गिले-शिकवे मिटाना आ गया है(1) जवानी चार दिन की ही रहे, बुढ़ापे को हँसाना आ गया है।।(2) अदायें हुस्न पर यूँ इश्क मरता जवानों को लुभाना आ गया है।।(3) नजर झुक कर कहेगी आज उनसे सनम तुमको मनाना आ गया है।।(4) दरोदीवार में थे छेद गहरे, दरारें और गहरी हो न जायें गहन धब्बे छिपाना आ गया है।।(5) रवानी देह में आये तुम्हीं से हमें छिपना छिपाना आ गया है।।(6) बड़ी चंचल है माया "पूर्णिमा" सुन उजाड़े घर ,बनाना आ गया है।।(7) डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।

पोस्ट संख्या- 10 क्या वक्त आया साथियो इन्सां लड़े इन्सान से।

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  गज़ल- 10 पोस्ट संख्या- 10 क्या वक्त आया साथियो इन्सां लड़े इन्सान से। बेड़ी पड़ी है पाँव में बेटी डरे यजमान से।1) ये उम्र जिस औलाद की खातिर हुई कुर्बान थी, कन्धे पिता के दब रहे अब पुत्र के अहसान से।।2) लहरें किनारा ढूँढती पथ से भटकती नाव जब, मंजिल लहर को तब मिले लड़ती रहे तूफान से।।3) ये प्रेम का हुआ असर जलने लगा बुझता दिया, लपटें उठी शोला बनी बस प्रेम की पहचान से।।4) निज घर भुला के मन कहाँ तू पाये'गा अब चैन को, तल्खी फिजा में अब भरी बस दूर रह व्यवधान से।।5) सत्गुरु चरण की धूल को मस्तक लगायें "पूर्णिमा" गुरु श्रेष्ठ जग में ही रहा हर बार बस भगवान से।।6) डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।

पोस्ट संख्या- 9 प्यार ही बाँटती बेटियाँ।

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गज़ल-9 पोस्ट संख्या- 9   प्यार ही बाँटती बेटियाँ।  साथ ही चाहती बेटियाँ।। छाँव बनकर कड़ी धूप में दुक्ख को टालती बेटियाँ।। दौर मुश्किल का आये अगर बाप सँग जागती बेटियाँ।। जिन्दगी के सफर में सदा धैर्य को पालती बेटियाँ।। बोझ लगते न रिश्ते कभी वक्त ही माँगती बेटियाँ।। माँ गई ईश के घर में जब बाल को पालती बेटियाँ।। नाज़ उन पे रहे बाप को वीर बन साजती बेटियाँ।। मात बिन चैन पाये न मन बाप को ताकती बेटियाँ।। उम्र आढ़े न आये कभी खुद का सुख वारती बेटियाँ।। प्रीत की डोर कच्ची नहीं "पूर्णिमा" भालती बेटियाँ। डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब

पोस्ट संख्या- 8 पेड़ से ही तो' जिंदगानी है।

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  गज़ल-8 पोस्ट संख्या- 8 पेड़ से ही तो' जिंदगानी है। आब से ही मिली रवानी है।। धूप उतरी चमन खिला सुंदर बागबाँ को मिली जवानी है।। मेघ गरजे हुआ गगन पागल आज धरती दिखे सुहानी है।। ओस की बूँद फूल पर चमकी पीर तारों की' ये पुरानी है।। धूल उड़ती फिज़ा भी' है निखरी साँझ की ये नयी कहानी है।। रेत पर बन गये निशाँ देखो  हार में जीत भी मनानी है।। मुक्त हो कर उड़ें परिन्दे भी "पूर्णिमा "भी हुई दिवानी है।। डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।

पोस्ट संख्या- 7ख्वाब तेरा दिल में उतरा जब से है

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  गज़ल-7 पोस्ट संख्या-7 ख्वाब तेरा दिल में उतरा जब से है निगाहों में इज़हारे प्यार तब से है।। गिला न कोई मिट्टी के मानव से  उम्मीद तो हमें हर वक्त रब से है। कभी देखा था पेड़ की शाख हिलते हवाओं में असर तुम्हारा कब से है। चले जाओगे यूँ बिन बुलाये सनम, शिकायत तो सिले हुये लब से है। कहीं खो गया है दिल ढूँढूँ किधर, फिजाओं में घुला ज़हर जब से है। है वक्त का तकाजा संभल' पूर्णिमा' खुमारी चढ़ी चाँद पर शब से है।। डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब

पोस्ट संख्या-6 अजनबी सी थी यह जीवन डगर।

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  गज़ल-6 पोस्ट संख्या-6 अजनबी सी थी यह जीवन डगर। मिल गया आप जैसा इक हमसफर।। लफ्ज़ खामोश हैं लब थिरकने लगे , कुछ न कह पाये मिलने लगी ये नज़र ।। वक्त कटने लगा फिर पता न चला , कब बसा प्यार का ये सुन्दर नगर।। अब तन्हाई का गम नहीं है हमें , रूह के मेल से खिलता मन शज़र।। थाम कर हाथ चलना यूँ ही सदा, 'पूर्णिमा 'पे हुआ आपका ही असर।। डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब 

पोस्ट संख्या- 5 नज़र का प्यार पढ़ लेना।

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  गज़ल-5 पोस्ट संख्या- 5 नज़र का प्यार पढ़ लेना। सुनो दिलदार पढ़ लेना।। लुटाती प्रेम हैं पवनें; किया शृंगार पढ़ लेना।। सुगंधित फूल उपवन में; खिले हैं यार पढ़ लेना।। कसक दिखती जगत में अब; भरी अख़बार पढ़ लेना।। सुहानी रात का आँचल; छिपा दीदार पढ़ लेना।। घिरी काली घटाओं में; हवा का वार पढ़ लेना।। छिपाकर हम करेंगे क्या; कभी किरदार पढ़ लेना।। पुकारे " पूर्णिमा "तम को ; गगन ललकार पढ़ लेना।। ...डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब सहज साहित्य ---अंक 681 प्रकाशित

पोस्ट संख्या-4 ईद ,दिवाली हों या होली।

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  गज़ल-4 पोस्ट संख्या- 4 ईद ,दिवाली हों या होली। प्रेम सिखाते हैं हमजोली।। काहे वैर भरा नस-नस में , भाल लगाओ चंदन रोली।। बेंध रहा जो अंतर्मन को, छोड़ें हम नफरत की बोली।। धर्म-कर्म हित आगे आयें, मत बने बन्दूक की गोली।। गाल गुलाबी नैन शराबी  भीग गये हैं दामन चोली।। महक फिजाओं में बिखरी है, घर-द्वार पर सजी रंगोली।। कृष्ण मुरारी दीन-हीन के , सुख-समृद्धि से भर दो झोली।। करे "पूर्णिमा " सदैव वंदन, सुखी नज़र आये हर टोली।। ..डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब 

पोस्ट संख्या--3 खेत खलिहान औ' प्रांगण बरबस इंतजार करते रहे

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  गज़ल-3 पोस्ट संख्या--3 खेत खलिहान औ' प्रांगण बरबस इंतजार करते रहे । नन्हें मुन्नो की किलकारी सुनने को तरसते रहे।। धरती भी मुरझा गई सूर्य की तपिश को पाकर। आहें धरा की मिटाने को सितारे भी मचलते रहे।। खोखले वादों की बुनियाद ही साकी कमजोर थी। संगमरमर के जिस्म भी झूठे वादों की मार सहते रहे।। एक-एक करके सब साथी चले गए देख रहा मुन्ना। बदल रहें है औ' बदलेंगे हालात यही सब कहते रहे ।। गरीबी,अनपढ़ता ,बाढ़ ,अकाल यां हो कारोना बीमारी। दीप रोशनी के शिक्षा से ही' 'पूर्णिमा" हमेशा जलते रहे।। डॉ पूर्णिमा राय, पंजाब drpurnima01.dpr@gmail.com

पोस्ट संख्या- 2 बेटियों का अब जमाना आ गया।

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  गज़ल-2 पोस्ट संख्या- 2 बेटियों का अब जमाना आ गया। हार में भी मुस्कुराना आ गया।।(1) रोज परचम जीत का लहरा रहीं आस उनपर भी लगाना आ गया।।(2) लाडले बेटे अगर माँ-बाप के  प्यार बिटिया पर लुटाना आ गया।।(3) फौज़ में भर्ती हुई जब बेटियाँ गर्व से सीना फुलाना आ गया।।(4) अब नहीं कमजोर जग में बेटियाँ राह के कंटक हटाना आ गया।।(5) वे सदा हक के लिये लड़ती रहीं  फर्ज उनको भी निभाना आ गया।।(6) दान दें दें जिन्दगी का हम उन्हें "पूर्णिमा" बन जगमगाना आ गया।।(7) डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।

पोस्ट संख्या- 1 देश हित में सिर उठाना आ गया

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  गज़ल-1 पोस्ट संख्या- 1 देश हित में सिर उठाना आ गया।  दुश्मनों को भी झुकाना आ गया।। आँधियों की चीरते जो बन हवा,  पाँव उनके सँग मिलाना आ गया।।  प्रेम का दरिया जो करते पार हैं,  बात उनकी अब सुनाना आ गया।। आग नफरत की बुझाते लोग जो,  वक्त उनके सँग बिताना आ गया।। भूख से जो थे बिलखते रोज ही ,  अन्न निर्धन को खिलाना आ गया।। जोश में जो होश अपना खो रहे,  पाठ धीरज का पढ़ाना आ गया।। दूर तक फैली हुई है "पूर्णिमा" आपसी तम को हराना आ गया।। डॉ.पूर्णिमा राय, पंजाब